राम वन गमन एवं केवट संवाद सुनकर श्रोता हुए भाव विभोर

सेक्टर 82 स्थित निरंजनी अखाड़ा, ब्रम्हचारी कुटी में आयोजित श्रीमहालक्ष्मी यज्ञ एवं श्रीराम कथा के सातवें दिन यज्ञाचार्य महेश पाठक शास्त्री के मार्गदर्शन में विद्वान ब्राम्हणों द्वारा गणेश भगवान, मां लक्ष्मी, नवग्रह, सप्तभद्रमण्डल,षोडश मातृका, चौसठ योगिनी, वास्तु देवता, दस दिगपाल, पंचलोकपाल, द्वादस ज्योतिर्लिंग, क्षेत्रपाल देवता,वरुण देवता आदि देवताओं का पूजन करा यज्ञ कराया गया।
 कथा व्यास अतुल प्रेम जी महाराज ने आगे का प्रसंग सुनाते हुए बताया कि भगवान राम मां सीता और सभी भाइयों के विवाह के बाद अवध में आ जाते हैं । महाराज दशरथ गुरु से आज्ञा लेकर राम को युवराज बनाने की घोषणा करते है पूरी अयोध्या में खुशी छा जाती है। सभी देवता यह जानकर परेशान हो जाते हैं कि अगर राम का राज्याभिषेक हो जाएगा तो राक्षसों का वध कैसे होगा। सरस्वती जी से सभी प्रार्थना करते हैं और सरस्वती जी मंथरा की बुद्धि को पलट देती हैं वह कैकयी को अपने दो वरदान राजा दशरथ से मांगने के लिए कहती है। कैकयी कोपभवन में चली जाती है और दशरथ से दो वरदान मांगती है कि भरत को राज्य और राम को वनवास। दशरथ जी अचेत हो जाते है। रामजी लक्ष्मण और सीता के साथ वन को चले जाते हैं। केवट प्रसंग सुनाते हुए अतुल प्रेम जी ने बताया कि गंगा किनारे पहुंचने पर केवल से नाव लाने को कहते है। ” मांगी नाव न केवट आना, कहहु तुम्हार मरमु में जाना” केवट कहता है कि मैं तुम्हारा मर्म जनता हूँ। जिनकी चरण रज लगते ही पत्थर की शिला नारी बन गयी अगर मेरी नाव भी नारी बन गयी तो मेरी रोजी रोटी का क्या होगा। बिना पैर धुलवाए आपको नाव में नहीं बैठाउँगा । ” अति आनंद उमगि अनुरागा, चरण सरोज पखारन लागा”।ऐसा कहकर भगवान राम , लक्ष्मण और सीता के पैर धोकर पूरे परिवार सहित उस चरणोदक को पीता है। इसके बाद गंगा के पार उतारता है।
 इस अवसर पर महंत ओम भारती, संयोजक एवं मुख्य यजमान राघवेंद्र दुबे, देवेंद्र गुप्ता, सुशील पाल, सुभाष शर्मा, मुकेश रावत, शिव शंकर सिंह, आर के शर्मा, नीरज शर्मा, एस के मिश्रा, पंकज झा, संजय पांडे, हरि जी, संदीप पाठक सहित तमाम लोग मौजूद रहे।

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