आप विधायक नहीं चाहते कि गत चार वर्षों के दौरान उनका भ्रष्टाचार सार्वजनिक हो-विजेन्द्र गुप्ता

नई दिल्ली, 29 जनवरी। दिल्ली विधानसभा में विपक्ष के नेता श्री विजेन्द्र गुप्ता ने आज कहा कि लोकपाल के समक्ष संपत्ति और व्यय के विवरण जमा न कराने पर अड़ी हुई आम आदमी पार्टी कानूनी और नैतिक दोनों ही दृष्टिकोणों से खोखली साबित हुई है। उन्होंने पूछा कि पारदर्शिता और सार्वजनिक जीवन में खुलेपन की दुहाई देने वाले मुख्यमंत्री केजरीवाल अब ब्यौरा जमा कराने से क्यों दूर भाग रहे हैं ? उन्होंने लोकायुक्त के समक्ष सफाई क्यों नहीं दी ? उन्होंने आम आदमी पार्टी का पक्ष लोकायुक्त के समक्ष क्यों नहीं रखा ? आखिरकार लोकायुक्त से भागने के पीछे उनकी क्या मंशा है ? उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया रहस्यमय ढंग से क्यों चुप्पी साधे हुए हैं। आप के मुखिया केजरीवाल को तो विवरण जमा करा ईमानदारी और पारदर्शिता का उदाहरण बनना चाहिए था। परन्तु वे सारे मुद्दे नदारद हैं और उनकी पार्टी हिवसल ब्लोअर को बचाने के बजाए उनकी जान के पीछे हाथ धोकर पड़ी है। इतना ही नहीं सारी आम आदमी पार्टी लोकायुक्त के विरोध में एकजुट हो गयी है। जब उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीश बिना मांगे अपनी आय का ब्यौरा जमा करा सकते हैं तो मुख्यमंत्री और उनके विधायकों को इससे परहेज क्यों। आप विधायक नहीं चाहते कि उनका भ्रष्टाचार सार्वजनिक हो। गत चार वर्षों में आप विधायकों की संपत्तियां और आमदनी जमीन से आसमान पहुंच गई है और आम आदमी पार्टी इस पर ढक्कन ढके रखना चाहती है।
विपक्ष के नेता ने कहा कि यह आश्चर्य की बात है कि अन्ना आंदोलन के दौरान जिस लोकपाल कानून की मांग दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल कर रहे थे, उन्हीं केजरीवाल को अब लोकपाल और लोकपाल के नियमों की कोई परवाह नहीं है। कल निर्धारित समय बीत जाने के बावजूद भी आप विधायकों ने अपनी संपत्ति को घोषित नहीं किया है। आम आदमी पार्टी उल्टे लोकायुक्त पर राजनीतिक दुर्भावना से ग्रस्त होने का आरोप लगाकर उल्टा चोर कोतवाल को डांटे वाली कहावत चरित्रार्थ कर रही है। नियमों के अनुसार सभी विधायकों के लिए आवश्यक है कि वे अपनी संपत्ति को ब्यौरा लोकायुक्त के समक्ष जमा करायें। ईमानदारी और पारदर्शिता की दुहाई देने वाली आम आदमी पार्टी ने लोकायुक्त के आदेशों को दुर्भाग्यवश राजनीति से प्रेरित बताकर अपने ढोल की पोल खोल दी है।
श्री विजेन्द्र गुप्ता ने कहा कि आम आदमी पार्टी का जन्म लोकपाल के मुद्दे से ही हुआ था। वर्ष 2014 में केजरीवाल ने दिल्ली विधान सभा में विश्वासमत हासिल करने के बाद अपने संदेश में कहा था कि मजबूत लोकायुक्त बिल लाना उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता है। अब जब वर्ष 2019 में लोकपाल के लिए उनकी परीक्षा का वक्त आया तो एक बार फिर वे बुरी तरह फेल हो गए। भ्रष्टाचार के विरूद्ध उनकी मशाल पूरी तरह बुझ चुकी है। अब वे स्वयं भ्रष्टाचार का प्रतीक बन गए हैं। सर्वोच्च व उच्च न्यायालय के न्यायधिशों के लिए यह अनिवार्य नहीं है कि वे अपनी संपत्ति का ब्यौरा जमा कराएं, परन्तु इसके बावजूद भी वे सार्वजनिक जीवन में पारदर्शिता के लिए ऐसा करते हैं। ऐसे में पारदर्शिता की दुहाई देने वाली आम आदमी पार्टी को पीछे हटना उसकी ईमानदारी और पारदर्शिता पर प्रश्नचिन्ह लगाता है।
नेता विपक्ष ने कहा कि जब लोकसभा और राज्यसभा के सदस्य तथा दिल्ली नगर निगम जैसी स्वशासित संस्थानों के पार्षदगण अपनी अपनी संपत्ति और देनदारी का ब्यौरा जमा करा सकते हैं तो कोई कारण नहीं कि दिल्ली विधान सभा के सभी विधायक अपनी संपत्ति और देनदारी का ब्यौरा नहीं दें। उन्होंने कहा कि यह आश्चर्य की बात है कि एक ओर  सांसद के रूप में आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता संजय सिंह तथा अन्य नेता नारायण दास गुप्ता और सुशील कुमार गुप्ता अपनी संपत्ति का ब्यौरा जमा करा सकते हैं तो दूसरी ओर आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया अन्य मंत्री तथा विधायक अपनी संपत्ति का ब्यौरा जमा कराने से इंकार कर रहे हैं।
श्री विजेन्द्र गुप्ता ने कहा कि ईमानदारी और पारदर्शिता का दम भरने वाले आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल को सत्ता में आते ही सबसे पहले स्वयं ब्यौरा जमा कराके अपने विधायकों के समक्ष उदाहरण पेश करना चाहिये था। परंतु उन्होंने ऐसा नहीं किया और न ही अपने किसी विधायक को ऐसा करने के लिये कहा। उन्होंने कहा कि अब जब लोकायुक्त ने नोटिस जारी कर ऐसा करने को कहा है तो इंकार करना अथवा उन पर आक्षेप लगाना केजरीवाल की बदनीयति का परिचायक है।

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