गोरखपुर की धरती पर जन्मे संजय आर. निषाद आज किसी परिचय के मुहताज नहीं हैं

गोरखपुर की धरती पर जन्मे संजय आर. निषाद आज किसी परिचय के मुहताज नहीं हैं | गरीबी में पले-बढ़े और पढ़े संजय जी से वे लोग प्रेरणा ले सकते हैं, जो कहते हैं कि हम तो गरीब हैं, हमें सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं, हम क्या कर सकते हैं? संजय आर निषाद ने जी तोड़ मेहनत के बल पर गोरखपुर से मुंबई तक का सफ़र तय किया | एक बेहद पिछड़े गांव में रहकर भी फिल्मी दुनिया में कुछकर गुजरने के हौसले ने उन्हें फिल्म निर्देशक बना दिया | माता – पिता मजदूर किसान थे और ऊपर से पढ़े – लिखे भी नहीं थे, इसलिए उन्हें शिक्षा का महत्व भी ठीक से नहीं पता था | फिर भी उन्होंने संजय का दाखिला गाँव की सरकारी पाठशाला में करा दिया | संजय दिन में पढते और शाम को गांव के लालाजी के यहाँ ब्लेक एंड व्हाइट टेलीविजन पर फिल्में देखने पहुंच जाते | बस यहीं से संजय ने फिल्मी दुनिया के सपने देखने शुरू कर दिए | माता-पिता के साथ मेहनत – मजदूरी करते सरकारी विद्यालय में पढते… धीरे-धीरे संजय बडे हो गये | सरकारी माध्यम से पढे संजय गोरखपुर के आसपास क्षेत्रीयस्तर पर फिल्म जगत से जुड गये | उनकी गतिविधियां तेजी से बडती चली गई | प्रतिभा में कोई कमी तो थी नहीं क्योंकि फिल्मी दुनिया में कुछ कर गुजरने का सपना तो वचपन वाला था |

तमाम लघु बजट और क्षेत्रीयस्तरी प्रोजेक्टों का सफल निर्देशन किया | मगर संजय आर निषाद को मुख्य पहचान हिंदी फीचर फिल्म पहल और शूद्र अ लव स्टोरी के सफल निर्देशन से मिली | पहल शूटिंग की शुरुआत से ही सुर्खियों में रही तो वहीं शूद्र अ लव स्टोरी सामाजिक भेदभाव जैसे ऊंच-नीच व छुआ-छूत वाली कहानी को लेकर काफी विवादों से घिरी रही | बनारस में शूटिंग के समय कई बार संजय आर निषाद की जान पर बन आई | वहां लोगों में फिल्म को लेकर काफी गुस्सा था | कई बार सेट पर तोड़फोड़ हो गयी, परन्तु संजय जी बहादुरी के साथ डटे रहे और काम पूरा करके ही मुंबई का रुख किया |

आपको बतादें कि उनकी यह फिल्म 15 फरवरी को महाराष्ट्र और गुजरात में एक साथ प्रदर्शित होने वाली है | इसके बाद सम्पूर्ण भारत के सिनेमाघरों में दस्तक देगी |
वहीं फरवरी के अंत से उनके निर्देशन में बनने वाली भोजपुरी फीचर फिल्म – हमार जान नदिया के पार की शूटिंग राहुल सिंह व रेशमा शेख के मुख्य अभिनय में शुरू हो जायेगी |

गोरखपुर के बेहद पिछड़े गांव से निकलकर जिस तेजी से संजय आर निषाद ने मुंबई तक का सफ़र तय किया है, वो बेहद क़ाबिले तारीफ़ है | वे फिल्मी दुनिया के एक बेताज बादशाह हैं |

जो बच्चे दूर दराज के पिछड़े स्थानों पर रहते हैं, वे संजय आर निषाद जी से प्रेरणा लेकर अपना मुकाम हासिल कर सकते हैं | लेकिन सिर्फ कोरे सपने देखने से सपने मूर्ति रुप नहीं लेते | सपनों को मूर्तिरूप देने के लिए कडी परीक्षाओं से गुजरना पडता है और बडी-बडी कुर्बानियां देनी पड़ती हैं | जिसका जीवंत उदाहरण संजय आर निषाद हैं | जब उनसे परीक्षाओं और कुर्बानियों की बात की तो वे भावुक हो उठे | उन्होंने कई ऐसी घटनाओं का जिक्र किया | जिनसे गुजरने के बाद कोई भी सामान्य व्यक्ति हताश-निराश होकर घर बैठ जाये | पर संजय आर निषाद ने संघर्ष की राह नहीं छोड़ी और आज वे एक सफल फिल्म निर्देशक हैं | आने वाले वक्त में कुछ ऐसी फिल्में उनके निर्देशन में आने वाली हैं जो सामाजिक मुद्दों पर केन्द्रित रहेंगी |

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