61 मॉनिटर लिज़र्ड ‘गोह’ का हुआ देशभर में शिकार, आरटीआई से खुलासा 

नोएडा:  गाँवों में अक्सर ‘गोह’ या ‘गुहेरा’  के नाम से विख्यात इस जीव से लोग बेहद डरते हैं , कई बार इन्हे ज़हरीला मानकर इन्हे मार दिया जाता है  , जबकि एक्सपर्ट्स का यह कहना है के यह ज़हरीली नहीं होती ,  यहाँ तक की  इनका  शिकार भी किया जाता है , जबकि यह वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972  की प्रथम अनुसूची में संरक्षित प्रजाति है जो विलुप्तप्राय जीवों में आता है। नॉएडा के गाँवों में एवं आसपास भी यह पाई जाती है।   

समाजसेवी एवं पर्यावरण कार्यकर्ता रंजन तोमर द्वारा वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो में लगाई गई एक आरटीआई द्वारा इसके शिकार सम्बन्धी कई जानकारियां सामने आई हैं। पिछले पांच वर्षों में किये गए मॉनिटर लिज़र्ड के शिकार की जानकारी देते हुए ब्यूरो कहता है की राज्यों एवं पुलिस से प्राप्त जानकारी के अनुसार पिछले 5 वर्षों में कुल 61 गोह का शिकार हुआ जिनमें 2016 में जहाँ मात्र 4 ऐसे केस आये , 2017 में 16 , 2018 में फिर 16 ,2019 में 15  जबकि 2020 में यह आंकड़ा 15 रहा , अर्थात कुल 61 मॉनिटर लिज़र्ड की हत्या इस दौरान की गई है।   
 

गोह (Monitor lizard)   सरीसृपों  स्क्वामेटा (Squamata) गण के वैरानिडी (Varanidae) कुल के जीव हैं, जिनका शरीर छिपकली के सदृश, लेकिन उससे बहुत बड़ा होता है।

गोह छिपकिलियों के निकट संबंधी हैं, जो अफ्रीका, आस्ट्रेलिया, अरब और  एशिया आदि देशों में फैले हुए हैं। ये छोटे बड़े सभी तरह के होते है, जिनमें से कुछ की लंबाई तो 10 फुट तक पहुँच जाती है। इनका रंग प्राय: भूरा रहता है। इनका शरीर छोटे छोटे शल्कों से भरा रहता है। इनकी जबान साँप की तरह दुफंकी, पंजे मजबूत, दुम चपटी और शरीर गोल रहता है।

गोह जब दौडती है तब पूछ ऊपर उठा लेती है। गोह मेंढक, कीडे-मकोडे, मछलियाँ और केकडे खाती है। यह बडी गुस्सैल स्वभाव की है। गोह आजकल बरसात से पहले किसी बिल या छेद में १५ से २० तक अडे देती है। मादा अंडों को छिपाने के लिए फिर भर देती है और बहकाने के लिए चारों ओर दो-तीन और बिल खोदकर छोड देती है। आठ नौ महीने के बाद कहीं सफेद रग के अंडे फूटते है। छोटे बच्चों के शरीर पर बिंदिया, व चमकदार छल्ले होते है। गोह पानी में रहती है। तराकी में दक्ष है यह, साथ में तेज धावक व वृक्ष पर चढने में माहिर हैोती है। पुराने समय में जो काम हाथीघोडे नहीं कर पाते थे, उसे गोह आसानी से कर देती थी। इनकी कमर में रसा बाधकर दीवार पर फेंक दिया जाता था और जब ये अपने पंजों से जमकर दीवार पकड लेती थी, तब रस्सी के सहारे ऊपर चढ जाते थे।

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