आयुर्वेद और एलोपैथ दो अलग चिकित्सा पद्धतियां, तुलना बेमानी: जायसवाल

पटना: आईएमए और बाबा रामदेव के बीच चल रही तनातनी में उतरते हुए भाजपा प्रदेश अध्यक्ष डॉ संजय जायसवाल ने आज फेसबुक पोस्ट के जरिये लिखा कि विगत कुछ दिनों से एक अजीब प्रतियोगिता देख रहा हूं। हर बेतुकी बात का जवाब देना कोई आवश्यक नहीं होता है। ज्यादा बोल कर आप किसी को जरूरत से ज्यादा तवज्जो देने लगते हैं। अभी आइएमए भी ऐसा ही कर रहा है।

उन्होंने लिखा कि बाबा रामदेव एक अच्छे योग गुरु जरुर हैं पर योगी नहीं हैं। योग के प्रति उनके ज्ञान पर कोई सवाल नहीं उठा सकता। लेकिन योगी उसको कहते हैं जो अपने मस्तिष्क सहित सभी इंद्रियों पर काबू पा ले। योग जीवन में बहुत आवश्यक है क्योंकि यह आपको निरोग रखता है पर योग चिकित्सा पद्धति नहीं है। हजारों वर्षों से हमारे यहां इलाज के लिए चरक संहिता और सुश्रुत की शल्य क्रिया ही चलती थी, कोई योग गुरु नहीं चलते थे।

डॉ जायसवाल ने लिखा कि आयुर्वेद शुरू से सम्मानित रहा है और सम्मानित है। मुझे इस बात का फक्र है कि भारत में आयुर्वेद के द्वारा बहुत सारी बीमारियां भी ठीक होती है पर हर चिकित्सा पद्धति की अपनी विशेषताएं और सीमाएं होती हैं। योग फिजियोथैरेपी का परिष्कृत रूप है जिसमें आपके आंतरिक स्वास्थ्य का भी संवर्धन होता है। यह उन्ही बीमारियों पर कारगर है जो फिजियोथैरेपी अथवा कसरत से ठीक की जा सकती हैं। इससे ज्यादा कुछ भी समझना अपनी जान को खतरे में डालने वाला होगा।

बाबा रामदेव पर चुटकी लेते हुए उन्होंने लिखा कि बाबा रामदेव जी को मैं मजाक में योग का कोका कोला बोलता हूं। हमारे यहां ठंडे पेय के रूप में सदियों से शिकंजी और ठंडई चलती थी पर अब हर घर में ठंडा, कोको कोला और पेप्सी के बाद ही रखा जाने लगा। उसी प्रकार भारतवर्ष में हजारों अति विशिष्ट योग साधक रहे हैं जिन्होंने भारतीय संस्कृति एवं जीवन प्रणाली में मूलभूत परिवर्तन किए हैं पर योग को घर-घर पहुंचाने मे बाबा रामदेव के योगदान को नकारा नहीं जा सकता है।

डॉ जायसवाल ने लिखा कि मैं अपने आईएमए के सभी मित्रों से अपील करूंगा कि कृपया हम निरर्थक बातों में प्रतियोगिता कर अपने वर्षों की साधना को बर्बाद नहीं करें। उन सभी मेडिकल चिकित्सकों जिन्होंने इस करोना काल में जान गंवाई है उनको यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

पोस्ट के अंत में विश्व के प्रथम पांच विश्वविद्यालयों में से एक माने जाने वाले मेलबर्न विश्वविद्यालय के मेडिकल कॉलेज के मुख्य द्वार पर स्थित वैद्यराज सुश्रुत की तस्वीर को दिखाते हुए उन्होंने लिखा कि 7 वर्ष पहले जब मैं वहां गया था तो सभी चर्चा मेरी पोस्ट ग्रेजुएट मेडिसिन पर नहीं बल्कि वर्तमान समय में आयुर्वेद के विकास में भारत के योगदान के बारे में ही पूछे गए थे। यह आयुर्वेद के वैश्विक महत्व को दिखाता है।

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