कौशल विकास से रोजगार: डॉ. प्रेम कुमार

बिहार विधानसभा में याचिका समिति के सभापति डॉ प्रेम कुमार ने कहा कि मानव सभ्यता विकास के प्रथम चरण से ही प्रगति का मापदंड रोजगार रहा है। भारत वर्ष में मात्र 3.75% लोगों के पास सरकारी नौकरी है। निजी संगठित क्षेत्र की बात करें तो यहाँ कुल नौकरियों का 10% रोजगार है। रोजगार के अवसर असंगठित क्षेत्रों में उपलब्ध है, और असंगठित क्षेत्र एक ऐसा क्षेत्र है जहां बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार मिल रहा है।

श्री कुमार ने कहा कि भारतवर्ष में जनसंख्या वृद्धि की दर 2.5 से 3% है। प्रत्येक वर्ष लगभग एक से डेढ़ करोड़ युवा बेरोजगारी की कतार में खड़े हो जाते हैं। सरकार ने नए रोजगार के अवसर तैयार तो कर रहे हैं पर जिस हिसाब से जनसंख्या बढ़ रही है उसमें रोजगार के अवसर की पर्याप्त व्यवस्था कर पाना मुश्किल हो रहा हैं।नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने 2014 में कौशल विकास कार्यक्रमों के तहत 2022 तक 50 करोड़ युवाओं को प्रशिक्षित करने का राष्ट्रीय लक्ष्य किया। इसकी प्राप्ति के लिए राज्य सरकारों की भूमिका भी सुनिश्चित की गई है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि केंद्र सरकार की यह महत्वाकांक्षी योजना बहुत ही प्रभावशाली रही है।कोरोना काल में इसका उपयोग कर सरकार अर्थव्यवस्था को जल्दी पटरी पर ला सकती है।

श्री कुमार ने कहा कि भारत वर्ष की विशाल और पारंपरिक कृषि व्यवस्था से अर्थव्यबस्था के साथ रोजगार को जोड़ना आज की परिस्थिति में अत्यावश्यक है। ऐसे तकनीकी प्रशिक्षण देने होंगे जिसकी जरूरत किसानों को प्रायः है और जो रोजमर्रा के जीवन में उपयोगी साबित होता है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था की आवश्यकताओं को जोड़कर ही विकास की अवधारणा को पूर्णता हासिल की जा सकती है। इससे नगरोन्मुख नहीं बल्कि ग्रामीणोन्मुख बनाना होगा। कृषि आधारित अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करना होगा। बेरोजगारी को दूर कर रोजगार परक समाज का स्थापना करना होगा, तभी समावेशी विकास के लिए नगरीय और ग्रामीण परिवेश को साथ में रखते हुए कौशल विकास का उन्मुखीकरण समय की मांग की मांग के अनुरूप यथार्थ साबित होगा।

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