सेक्टरों में गाँवों से पांच गुना ज़्यादा डस्टबिन लगाए , प्राधिकरण की ‘एलीट ‘ सोच हुई उजागर

नोएडा: नोएडा विलेज रेसिडेंट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष एवं युवा समाजसेवी रंजन तोमर द्वारा लगाई गई एक आर टी आई से बेहद चौंकाने वाली बात सामने आई है , तोमर ने जवाब माँगा था के प्राधिकरण द्वारा शहर और गाँवों में कहाँ कहाँ डस्टबिन लगाए हैं , जिसके जवाब में प्राधिकरण ने जो आंकड़े दिए हैं उनसे प्राधिकरण के ‘एलीट’ रवैय्ये की पोल खुल गई है , जहाँ सेक्टर 44 जैसे पॉश एरिया में सबसे ज़्यादा 14 डस्टबिन लगाए गए हैं वहीँ शहर की सीमा में पड़ने वाले 81 गाँवों में से मात्र 15 में ही कुछ डस्टबिन रखे गए हैं जबकि सेक्टरों में 80 से ज़्यादा जगहों पर डस्टबिन प्रस्तावित अथवा रखे जा चुके हैं , ऐसे में सवाल उठते हैं के गाँवों की ज़मीन पर बसे हुए नॉएडा शहर में उन्ही ग्रामीणों के साथ हो रहे सौतेले व्यवहार का ज़िम्मेदार कौन है ? साथ ही बड़ा सवाल यह भी हैं के नॉएडा शहर स्वच्छ भारत मिशन के तहत अपनी रैंकिंग सुधारने को प्रयासरत है , किन्तु क्या गाँवों के स्वछता न होने के बाद भी प्राधिकरण रैंकिंग सुधार पायेगा ? क्या शहर के विश्व के 30 शहरों में शामिल होने के बाद अंतर्राष्ट्रीय स्तर की सफाई एवं सतत विकास लक्ष्यों की प्राप्ति प्राधिकरण के इस तरह के व्यवहार के बाद प्राप्त की जा सकती है ?

81 गाँवों में से जहाँ प्राधिकरण ने डस्टबिन लगाए है उनमें गिझोर , मामूरा , चौड़ा, बरोला , भंगेल ,सलारपुर , हाजीपुर , गेझा , रायपुर , बख्तावरपुर , इलाहाबास, भूदा , नंगला चरणदास जैसे गाँव हैं , गौरतलब है के सबसे ज़्यादा डस्टबिन गिझोर एवं मामूरा में लगाए गए है जिनकी संख्या 6 है जो सेक्टर 44 (जहाँ 14 डस्टबिन लगाए गए हैं ) से आधी भी नहीं है जबकि यह सेक्टर 44 से काफी बड़े और काफी ज़्यादा कूड़ा उत्पन्न करते हैं , भंगेल जैसे बड़े व्यावसायिक गाँव में शर्मनाक रूप से मात्र 3 डस्टबिन लगाए गए हैं , जबकि अट्टा का उल्लेख तक इस लिस्ट में नहीं है , जो की शहर का सबसे पुराना और भीड़ भाड़ वाला गाँव है। सदरपुर एवं साथ लगी सदरपुर कॉलोनी एवं छलेरा जैसे गाँवों का नाम तक इस लिस्ट में नहीं है। जो की ह्रदय विदारक है।

यह जगजाहिर है के प्राधिकरण द्वारा बसाये गए सेक्टरों में स्वच्छता सम्बन्धी परेशानियां ग्रामीण क्षेत्रों से तुलनात्मक रूप से कम हैं ,साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में डोर टू डोर कलेक्शन न होने से कूड़ा ज़्यादातर बाहर फेंका जा रहा है , ग्रामीण क्षत्रों में ज़्यादातर अब किराये पर ,शहर में रहने वाली जनता के यहाँ कार्यरत ड्राइवर , आया एवं अन्य कामगार रहते हैं , जो की शहर का एक अहम् हिस्सा हैं , ऐसे में यहाँ कम से कम डस्टबिन लगाना न ही न्यायसंगत है न ही प्रासंगिक , प्राधिकरण की नीतियां पूर्ण रूप से फेल नज़र आती हैं।

नोवरा संस्था प्राधिकरण को कई बार चेता चुका है एवं इस बार फिर चेतावनी देता है के यदि प्राधिकरण इसी प्रकार भेदभाव करता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब ग्रामीण जनता एवं उनका साथ देने के लिए शहरी प्रबुद्धजन सड़कों पर उतर आएंगे और अपने अधिकारों को प्राधिकरण से आंदोलन कर छीन लेंगे। इसके साथ ही लगातार भेदभाव सहने के कारण नोवरा कोर्ट जाने का रास्ता भी तलाशेगी।

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