देश को आत्मनिर्भर बनाने के अभियान में हिंदी की भूमिका अहम: नीरज दुबे

नई दिल्ली:  देश को आत्मनिर्भर बनाने के अभियान में हिंदी की भूमिका अहम है। इसलिए सभी विभागों की वेबसाइट हिंदी में होनी ही चाहिए। हालांकि सोशल मीडिया के इस जमाने में हिंदी भाषा का अशुद्धिकरण हो रहा है। ये बातें डिजिटल युग में हिंदी भाषा का भविष्य विषयक प्रभासाक्षी की परिचर्चा कार्यक्रम में उभरकर सामने आईं।

बता दें कि हिंदी दिवस पर प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क की ओर से आयोजित परिचर्चा में कश्मीर से लेकर कोयम्बटूर तक के विद्वानजनों ने हिस्सा लिया। ‘डिजिटल युग में हिंदी भाषा का भविष्य’ विषयक परिचर्चा में सभी ने इस पर विचार रखे कि कैसे सभी क्षेत्रीय भाषाओं को साथ लेकर हिंदी आगे बढ़ सकती है। डिजिटल युग में हिंदी के सम्मुख आ रही चुनौतियों पर भी चर्चा की गयी। 
ऑनलाइन परिचर्चा के उद्घाटन सत्र में आईआईएमसी, दिल्ली के महानिदेशक संजय द्विवेदी ने अपने विचार रखे। उसके बाद युवा साहित्यकार डॉ. श्रीमती इंदिरा डांगी ने हिंदी भाषा की समृद्धि के उपाय सुझाये। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी रचनाओं से लोगों को मंत्रमुग्ध कर चुके सर्वेश कुमार अस्थाना, डॉ. मंजरी पाण्डेय, सुश्री आकृति विज्ञा अर्पण, तारा चंद तन्हा और अशोक झंझटी की कविताओं का आनंद भी परिचर्चा से जुड़े लोगों ने उठाया।
स्वागत संबोधन में प्रभासाक्षी.कॉम के संपादक नीरज कुमार दुबे ने सभी को हिंदी दिवस की शुभकामनाएं देते हुए कहा, ”यह बड़े हर्ष की बात है कि इस बार हिंदी दिवस दस दिवसीय गणेशोत्सव के बीच आया है। इसलिए हमारी प्रार्थना है कि भगवान श्रीगणेश हमारी हिंदी को और समृद्धि तथा सभी भारतीय भाषाओं को प्रसिद्धि प्रदान करें।” उन्होंने अपने संबोधन के माध्यम से इस विषय पर प्रकाश डाला कि कैसे हमारी प्यारी हिंदी, हमारी प्यारी राजभाषा जोकि हमारी राष्ट्रभाषा भी है, उसके माध्यम से देश को आत्मनिर्भर बनाने के अभियान में और सहयोग किया जा सकता है।
आईआईएमसी, दिल्ली के महानिदेशक संजय द्विवेदी ने कहा, ”वर्तमान दौर में हिंदी का डंका देश-दुनिया में बज रहा है। हिंदी पर गर्व की अनुभूति की बात इसलिए भी है कि हम ऐसी भाषा बोलते हैं जिसके पास सबसे बड़ा शब्द संसार है। जिसके पास रचनाकारों की एक महान परंपरा है।” उन्होंने कहा कि सूचना के तमाम माध्यमों में इंटरनेट सबसे ऊपर है। चीन और अमेरिका के बाद भारत में सबसे अधिक इंटरनेट यूजर मौजूद हैं। उन्होंने कहा कि डिजिटल माध्यम से कई नए पत्रकार उभरकर आए हैं।
श्री द्विवेदी ने प्रश्नोत्तर सत्र के दौरान एक प्रश्न के उत्तर में कहा कि यह सही है कि सोशल मीडिया के इस जमाने में भाषा का अशुद्धिकरण हो रहा है। लेकिन हमें इस विकास यात्रा में सभी को शामिल करके आगे बढ़ना चाहिए। उन्होंने कहा कि कोई भी भाषा जब विकास करती है तो उसमें संकट आते हैं। अंग्रेजी लोग अलग तरह से बोलते हैं। उसी तरह हिंदी भी अलग-अलग राज्यों की बोलियों से मिलकर समृद्ध होती है। श्री द्विवेदी ने कहा कि भाषा एक बहती नदी की तरह है। उसको लेकर अड़ने की जरूरत नहीं है।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए साहित्य अकादमी के युवा साहित्यकार पुरस्कार से सम्मानित डॉ. इंदिरा डांगी ने कहा कि भाषा तो एक माध्यम है। आप जीवन और कॅरियर में खुद को कैसे प्रस्तुत करते हैं, यह देखना होगा। उन्होंने कहा कि हिंदी दिवस की सार्थकता तभी है जब हम इसे एक दिन ना मनाकर रोज मनाएं। डांगी ने यह भी कहा कि बच्चों को अंग्रेजी सिखाने से परहेज नहीं करना चाहिए लेकिन मातृभाषा भी सिखानी चाहिए।
परिचर्चा के दौरान वाराणसी से जुड़ीं साहित्यकार और कवयित्री डॉ. मंजरी पाण्डेय ने कहा कि आज हम डिजिटल क्रांति की बात तो कर रहे हैं, लेकिन आज ज्ञान क्रांति की भी जरूरत है। उन्होंने कहा कि सभी विभागों की वेबसाइट हिंदी में होनी ही चाहिए। परिचर्चा में हास्य कवि सर्वेश अस्थाना, जिन्हें स्माइल मैन के नाम से भी जाना जाता है, के अलावा गोरखपुर से सुश्री आकृति विज्ञा अर्पण, अयोध्या से तारा चंद तन्हा और लखनऊ से अशोक झंझटी तथा गोरखपुर से निर्भय शुक्ला की कविताओं का आनंद भी उपस्थितजनों ने उठाया।
कार्यक्रम के समापन पर नीरज कुमार दुबे ने कहा कि हिंदी दिवस पर आज देशभर में कई कार्यक्रम हो रहे हैं और इन कार्यक्रमों में हमारी राजभाषा के उत्थान के लिए तमाम तरह के संकल्प भी लिये जा रहे हैं। देश को एक सूत्र में जोड़ने वाली हिंदी की विकास यात्रा जारी रहे और लिये गये संकल्प सिद्धि में परिवर्तित हो सकें, इसके लिए युवा पीढ़ी को अपना पूर्ण योगदान देना होगा। उन्होंने कहा कि जिस तरह हम वैलेंटाइन डे, फादर्स डे, मदर्स डे और ऐसे ही तमाम तरह के ‘डे’ धूमधाम से मनाते हैं और उनसे संबंधित तस्वीरें सोशल मीडिया पर साझा करते हैं, यदि हम उसी उत्साह के साथ हिंदी दिवस भी मनाएं तो सुखद परिणाम मिलना निश्चित है।

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