बिहार में महागठबंधन नही रहा, उपचुनाव में NDA प्रत्याशियों की जीत पक्की

पटना: तेजस्वी यादव भले अपने आप को महागठबंधन का नेता मानते हो। लेकिन महागठबंधन के घटक दल तेजस्वी यादव को नेता नहीं मानते हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण बिहार विधान सभा के उपचुनाव में सामने आया है। तेजस्वी यादव ने अपने अपने घटक दल कांग्रेस को धोखा दिया, बंटवारे के मुताबिक कुशेश्वरस्थान की सीट कांग्रेस की थी। लेकिन, उस पर उम्मीदवार उतारकर तेजस्वी यादव ने अपने वर्चस्व को दिखाया तो, कांग्रेस ने भी तेजस्वी के खिलाफ आंखें तरेर दी। अब कांग्रेस के उम्मीदवार भी तारापुर और कुशेश्वरस्थान चुनाव लड़ रहे हैं। ऐसे में तेजस्वी यादव की महागठबंधन में प्रासंगिकता पूरी तरह से समाप्त हो गई है। अब महागठबंधन के कोई भी घटक दल उनको अपना नेता नहीं मानता है।

अब तेजस्वी यादव तय करें कि वह कितने मोर्चों पर लड़ाई लड़ेंगे?  तेजस्वी यादव कहते हैं कि उनकी लड़ाई भाजपा से है लेकिन भाजपा से पहले उनको अपने परिवार की लड़ाई को निपटाना होगा। उनके भाई तेजप्रताप यादव इस चुनाव में अपनी तरफ से उम्मीदवार उतार रहे हैं। दूसरी लड़ाई, उनकी अपने घटक दल कांग्रेस से शुरू हो गई है। कांग्रेस के उम्मीदवार इस उपचुनाव में उतर चुके हैं। अब तो इस चुनाव में पप्पू यादव ने भी अपने उम्मीदवार उतार दिए हैं। तेजस्वी यादव को यह तय करना होगा कि आखिर उनकी लड़ाई किससे हैं?  क्योंकि इस उपचुनाव में एनडीए की जीत हो रही है और भारी बहुमत से उपचुनाव को एनडीए के प्रत्याशी जीतेंगे।
अपनी जनता को धोखा देते देते लालू परिवार अपने घटक दलों को भी धोखा देने लगे हैं। यहां तक की धोखेबाजी में तेजस्वी यादव ने अपने भाई तेजप्रताप को भी नहीं बख्शा है। जिस तरह से तेज प्रताप यादव आरजेडी  में अलग-थलग पड़ गए हैं, इससे साफ इंगित होता है कि तेजस्वी यादव ने एक चक्रव्यू के तहत अपने रास्ते से, अपने बड़े भाई तेज प्रताप यादव को हटा दिया है। उसी रणनीति के तहत तेजस्वी यादव ने कांग्रेस को भी रास्ते से हटाने की मुहिम छेड़ दी है। अब सिर्फ वाम दल बचे हैं। उसमें भी पहले कांग्रेस ने सीपीआई को नुकसान पहुंचाया है।  सीपीआई के नेता कन्हैया कुमार को अपने दल में मिला लिया। कुल मिलाकर देखा जाए तो बिहार में महागठबंधन नाम का कोई गठबंधन नहीं रह गया है। सभी अपनी लड़ाई इंडिविजुअल लड़ रहे हैं, अब तेजस्वी यादव महागठबंधन के नेता नहीं रहे।

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