नवजात शिशुओं को भी प्रभावित करती थायराइड की समस्या

नोएडा:  थायराइड की समस्या नवजात शिशुओं को भी प्रभावित करती है। यह बात पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ चाइल्ड हेल्थ (पीजीआईसीएच) द्वारा किये गये एक शोध में सामने आयी है।

चाइल्ड पीजीआई के निदेशक डा. अजय सिंह ने बताया – आमतौर पर यह समझा जाता है कि थायराइड की समस्या बड़े बच्चों और बड़ों में देखने को मिलती है, लेकिन यह समस्या नवजात शिशुओं को भी प्रभावित करती है। एनआईसीयू (न्यूयो नेटल इंटेंसिव केयर यूनिट)  में भर्ती बच्चों में थायराइड हार्मोन की समस्या का अध्ययन करने के लिए पीजीआईसीएच  नोएडा के नियोनेटोलॉजी विभाग में एक शोध किया गया।  
पीजीआईसीएच नोएडा के नियोनेटोलॉजी विभाग की अध्यक्ष  डॉ रुचि राय द्वारा यह अध्ययन एनआईसीयू में भर्ती उन 200 शिशुओं पर किया गया जो या तो समय से पहले पैदा हुए थे या बहुत बीमार थे। शोध से पता चला कि इन शिशुओं में थायरॉइड हार्मोन असंतुलित था जो ऐसे शिशुओं के अंतिम परिणाम को प्रभावित कर सकता है। ऐसे शिशुओं में थायराइड हार्मोन के स्तर की कमी उनमें बीमारी की गंभीरता को बढ़ा सकती है।  कुछ नवजात शिशुओं में जन्मजात थायराइड हार्मोन की कमी होती है जो उन्हें मानसिक मंदता की ओर ले जाती है। डॉ रुचि राय के अनुसार शिशुओं में जन्मजात  थायराइड की कमी को जीवन के तीसरे या चौथे दिन किए गए एक साधारण रक्त परीक्षण द्वारा पहचाना जा सकता है और ऐसे में इन शिशुओं पर किसी भी दीर्घकालिक प्रभाव को रोकने के लिए तुरंत उपचार शुरू किया जाता है, लेकिन समय से पहले जन्मे और बीमार बच्चों में यह एकल रक्त परीक्षण इस जन्मजात कमी का निदान करने में सक्षम नहीं हो सकता है। इसलिए जीवन के तीसरे सप्ताह में किया गया एक रिपीट टेस्ट आवश्यक है।  
शोध में इस बात पर जोर दिया गया है कि सभी समय से पहले पैदा हुए शिशुओं और बीमार शिशुओं का जन्म के समय थायराइड हार्मोन की स्थिति के लिए मूल्यांकन किया जाना चाहिए और जीवन के 14 से 21 दिनों में दोबारा से किया जाना चाहिए।  शोध को प्रतिष्ठित पत्रिका “आर्काइव्स ऑफ एंडोक्रिनोलॉजी एंड मेटाबॉलिज्म” में प्रकाशन के लिए स्वीकार किया गया है।
डा. अजय सिंह का कहना है- पीजीआईसीएच का उद्देश्य न केवल बच्चों को सर्वोत्तम संभव उपचार देना है बल्कि अच्छी गुणवत्ता वाले शोध करना भी है जिसे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता दी जाएगी।

Facebook Comments