एमिटी ला स्कूल में जन स्वास्थ्य और पर्यावरण मुद्दे और समाधान संगोष्ठी का आयोजन

लखनऊ 24 जनवरी 2019- पर्यावरण की बिगड़ती सेहत के कारण जीव जगत के अस्तित्व पर मंडरा रहे खतरों के प्रति समाजिक चेतना बढ़ाने और इनसे निबटने के उपायों पर चर्चा करने के लिए एमिटी ला स्कूल, एमिटी विश्विद्यालय लखनऊ परिसर में जन स्वास्थ्य और पर्यावरणः मुद्दे और समाधान विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया।

मुख्य अतिथि श्याम शंकर उपाध्याय, विधिक सलाहकार माननीय राज्यपाल, उत्तर प्रदेश, प्रसिद्ध अर्थशाष्त्री एवं कार्यक्रम के प्रमुख वक्ता प्रोफेसर मोहम्मद मुज़म्मिल, पूर्व उपकुलपति आगरा विश्वविद्यालय, प्रोफेसर बलराज चैहान, कुलपति राष्ट्रीय विधि विद्यालय जबलपुर, सेवानिवृत्त मेजर जनरल केके ओहरी एवीएसएम, चेयरमैन एमिटी विश्विद्यालय उप्र. के सलाहकार, प्रो. सुनील धनेश्वर, कार्यवाह प्रतिकुलपति एमिटी विवि लखनऊ परिसर, नरेश चंद्र, निदेशक परियोजना एवं मेंटोर एमिटी ला स्कूल और डा. जेपी यादव निदेशक एमिटी ला स्कूल ने दीप प्रज्जवलित कर संगोष्ठी का शुभारम्भ किया।

कार्यक्रम में बोलते हुए प्रसिद्ध अर्थशाष्त्री प्रोफेसर मोहम्मद मुज़म्मिल ने कहा कि पर्यावरण के वर्तमान हालात के लिए पूरी तरह मानव समाज उत्तरदायी है। उन्होने अर्थशाष्त्र के दृष्टिकोण से देखते हुए कहा कि, विकास का उत्पादक, उद्देश्य और उपभोक्ता तीनो ही मानव है। उन्हाने कहा कि, पर्यावरण जीवन के लिए इनपुट देता है और इकाॅनमी इस इनपुट को लेकर आउटपुट में बदल देती है। इनपुट से आउटपुट में बदलने की इस प्रक्रिया में ही प्रदूषण पैदा होता है। जब यह प्रदूषण पर्यावरण की शुद्धिकरण की क्षमता से अधिक हो जाता है तब इसके दुष्परिणाम प्रकृति में दिखाई देने लगते हैं। उन्होने कहा कि इस मानव निर्मित समस्या से निपटने के रास्ते मानव को ही तलाशने होंगे।

श्री श्याम शंकर उपाध्याय ने इस विषय के इतिहास और आगामी समस्या को रेखांकित करते हुए कहा कि, भारतीय संस्कृति और धर्म हमेशा से ही पर्यावरण की सुरक्षा करने के लिए कहते रहे हैं। वृक्षों, नदियों, वायु सहित विभिन्न प्राकृतिक शक्तियों की अराधना और घार्मिक महत्व के पीछे हमेशा से प्रकृति की सुरक्षा भावना रही है। उन्होने कहा कि मानव इन प्राचीन नियमों की अवहेलना करते हुए विकास की दौड़ में आज वहां आ पहुंचा है जहां एक समस्या का हल करने के प्रयास में चार अन्य नयी समस्याओं का जन्म हो जाता है। उन्होने कहा कि हो सकता है कि जब इस विकास के चरम पर पहुंचने के बाद मानव पुनः उन्हीं नियमों और जीवन शैली को अपनाए जिसे वह बहुत पीछे छोड़ आया है। उन्होंने विधिक के नजरिये से भी बोलते हुए राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण कि आलोचना कि अभी तक जमीनी सम्प्रभुता पर कामयाबी नहीं हासिल हो पायी है उन्होंने पुराने विधिक नियमो को बदलाव कि भी बात कही।

.इसके बाद इस कार्यक्रम को संबोधित करते हुए प्रोफेसर बलराज चैहान ने विषय को मानव समाज के लिए एक चुनौती बताते हुए कहा कि केवल विधि का सख्त होना ही सही नहीं बल्कि इस समस्या की जड़ मानव समाज में ही है और मानव एवं विधि दोनो को मिलकर ही इस समस्या का उपचार तलाशना है।

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