“विचार प्रवाह” …..

“ममता दी! आप लाख कोशिश कर लें, हम बंगाल को जलने नहीं देंगे!”
कल का दिन कई मायनों में ऐतिहासिक और दुखद रहा। शस्य-श्यामला बंगाल की भूमि जिस तरह से चुनाव के हरेक चरण में रक्त-रंजित रही, वह सचमुच बेहद दुखद है। इससे भी क्षोभ की बात यह रही कि जिन ईश्वरचंद्र विद्यासागर जी ने भारतीय नागरिक समाज को शिक्षा के लिए प्रेरित किया, कई सामाजिक सुधारों की प्रेरणा दी, उनकी मूर्ति तोड़ दी गयी।

ममता दी अपनी तानाशाह और हिंसक सोच में कितनी आगे बढ़ चुकी हैं, सत्ता पाने के लिए वह पूरे राज्य को किस तरह आग में झोंक रही हैं, यह अब केवल हमारा आरोप मात्र नहीं है, बल्कि इस पर चुनाव आयोग ने भी मुहर लगा दी है। चुनाव आयोग ने कहा कि हिंसा की घटनाओं से हमें काफी दुख है। हमने पहली बार इस तरह से धारा 324 का इस्तेमाल किया है। लेकिन, भविष्य में भी ऐसी घटनाएं हुईं तो हम फिर कदम उठाएंगे। आयोग ने सीआईडी के एडीजी, प्रधान सचिव और गृह सचिव को भी हटा दिया है।
ऐसा पहली बार स्वतंत्र भारत के इतिहास में हुआ है कि चुनाव-प्रचार की अवधि के 19 घंटे पहले ही चुनाव-प्रचार बंद हो गया। इसके पहले भी तानाशाह दीदी ने कम भड़काऊ और प्रजातंत्र-विरोधी काम नहीं किए हैं। उन्होंने संघीय ढांचे को भी चोट पहुंचायी और पीएम तक को सीधे चुनौती दी है। रैली के लिए इजाजत नहीं देकर, मंच बनानेवाले मजदूरों को पीटकर, आखिर कौन सा लोकतंत्र स्थापित होगा?
विद्यासागर जी की मूर्ति हॉस्टल के दो कमरों के पार बंद थी। उसको अंदर से किसने खोला, क्योंकि भाजपा के कार्यकर्ता तो सड़कों पर थे? जाहिर तौर पर टीएमसी के गुंडों ने ही यह शर्मनाक वारदात की है। उन्होंने पेट्रोल-बम चलाए तो हमला भी किया। खेदजनक तो यह है कि विपक्ष इसमें भी ओछी राजनीति पर उतारू है। जैसा कि हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्रमोदी ने कहा भी है कि यह प्रश्न केंद्र और किसी राज्य सरकार का नहीं है, बल्कि यह प्रश्न लोकतंत्र का है। यदि पूर्व प्रधानमंत्री भारत-रत्न अटल बिहारी वाजपेयी के शब्द उधार लें तो, ‘सरकारें आएंगी, जाएंगी, मतभेद होंगे, रहेंगे, पार्टियां बनेंगी, बिखरेंगी, लेकिन यह राष्ट्र रहना चाहिए, इस देश की धुरी रहनी चाहिए।’ तो, यहां सवाल लोकतंत्र का है, इसे भी हमारे प्रधानमंत्री के अंधे विरोध में कुछ लोगों ने नाक का सवाल बना लिया है। कांग्रेस, सपा से लेकर बसपा तक ने बंगाल की तानाशाह दीदी को समर्थन देकर यह साबित कर दिया है कि वे भी लोकतंत्र विरोधी हैं और एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं।
सवाल, पक्ष और विपक्ष से कहीं बड़ा है। देश का है, देश के संविधान का है।

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