भव्य श्रीराम मंदिर के निर्माण की शुरुआत के साथ भारत ने ली करवट

अयोध्या में भव्य श्रीराम मंदिर का निर्माण इतिहास की करवट का ऐलान है। यह केवल एक मंदिर-निर्माण का मसला नहीं है, बल्कि करोड़ों भारतवासियों के पुनर्जागरण का पर्व है, सनातनी मूल्यों के प्राकट्य का उत्सव है और भारत में सही मायनों में पंथनिरपेक्षता की स्थापना का विरल उदाहरण है। राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद मामले में सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला आने के साथ ही लगभग 500 वर्ष पुराने इस मामले का पटाक्षेप हो चुका, यवनिका-पतन हो चुका है।

यह गौर करने की बात है कि सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की बेंच ने एकमत से रामलला के पक्ष में फैसला सुनाया। कोई भी न्यायाधीश इस फैसले के विरोध में नहीं थे और सर्वसम्मति से अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण का रास्ता साफ हुआ है। हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपना वादा पूरा किया है। उन्होंने कहा था कि न्यायालय के जरिए इस मामले का शांतिपूर्ण हल निकाला जाएगा और आखिरकार वही हुआ। अब, लगभग तीन दशक बाद प्रधानमंत्री जब अयोध्या गए थे, तब तक सरयू में बहुत पानी बह चुका था, लेकिन वह प्रतीक्षा, वह तितीक्षा न केवल माननीय पीएम की थी, वरन् संपूर्ण हिंदू समाज भी उस भाव से ही भऱा हुआ था। वह प्रतीक्षा समाप्त हुई है, मित्रों।

सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को तीन महीने भीतर एक ट्रस्ट बनाकर अयोध्या में राम मंदिर बनाने का आदेश दिया था, साथ ही सुन्नी वक्फ बोर्ड को 5 एकड़ जमीन अयोध्या में हीं मस्जिद बनाने के लिए दी गयी। यह सनातन धर्म के सर्व-पंथ समभाव का सर्वोच्च उदाहरण है, जहां हमने न केवल अपने सर्वोच्च प्रतीकों, देवताओं में से एक के लिए 5 शताब्दी की एक थका देनेवाली लड़ाई भी लड़ी, बल्कि बेहद धैर्य पूर्वक न्यायालय के रास्ते इसका समाधान भी खोजा। नवंबर में जब कोर्ट का फैसला आया, तब भी हिंदू समाज ने धैर्य कायम रखते हुए पूरी शांति और खामोशी से अपने रामलला के मंदिर-निर्माण की तैयारियां की। हम सड़कों पर नहीं उतरे, दूसरे समुदाय की भावनाओं को आहत नहीं किया।

राम मंदिर निर्माण के नायकों में एक हमारे प्रधानमंत्री ने भी एकाधिक बार जनता को संयम बरतने और शांति प्रदर्शन का आह्वान किया है। 1990 में जो सपना लेकर अयोध्या से सोमनाथ की यात्रा निकली थी, तो उस रथ के वाहक भले आडवाणी जी थे, पर सारथ्य तो मोदी जी के हाथों में ही था। पर्दे के पीछे से वर्तमान प्रधानमंत्री ही उस रथ यात्रा के सारथी थे। उन्होंने ही सोमनाथ से शुरू होने वाली उस रथ यात्रा की पूरी योजना बनाई थी। उस समय भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव रहे मोदी जी पर ही रथ यात्रा की सारी तैयारियों और भीड़ के नियंत्रण की जिम्मेदारी थी।

हालांकि, पूरी यात्रा के दौरान मोदी जी ने पर्दे के पीछे मात्र से ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और कोई भाषण भी नहीं दिया। उन्हें आधिकारिक कार्यक्रमों और यात्रा मार्ग के बारे में बताने का काम सौंपा गया था। इतना लेकिन तय था कि उन्होंने रथयात्रा को रोकने के लिए तत्कालीन यूपी सरकार को चुनौती जरूर दी थी। आज का संयोग देखिए, जिन हाथों में उस रथ यात्रा की बागडोर थी, वह आज देश की बागडोर संभाल रहे हैं, जिन्होंने रथ यात्रा को रोका वे बीमार हैं, जेल में पड़े हैं और जिन्होंने कारसेवकों पर गोली चलाने का आदेश दिया, वे बीमारी की अवस्था में अस्पताल में पड़े हुए हैं और करोड़ों रामभक्त, सनातनी उस दिव्य समारोह के साक्षी बने हैं, जिससे अयोध्या में भव्य मंदिर का निर्माण होनेवाला है। इसे कहते हैं श्रीराम की लीला।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के 15 ट्रस्टियों में से एक के हमेशा दलित वर्ग से रहने की व्यवस्था कर यह तय कर दिया है कि उनकी व्यापक और विस्तृत सोच कहां तक पहुंचती है, साथ ही जिन परासरन जी ने रामलला का मुकदमा लड़ा, कांग्रेसी-कम्युनिस्ट झूठों और विरोध को अपने तर्क और तथ्य से काटा, उनको अध्यक्ष बनाना भी प्रतिभा का सहज सम्मान ही है।

कहने की बात नहीं कि यह उत्सव हम सभी सनातननियों के लिए एक उत्साहित करने वाला समारोह था। यह हमारे आदर्शों, हमारे पौराणिक समाज के उच्च मूल्यों के प्रकटीकरण का उत्सव था।

 4 और 5 अगस्त को अपने घर पर हमने दीए जलाए, रामायण का अखंड पाठ किया और इस भव्य दृश्य के साक्षी बने, जब हमारे रामलला के भव्य मंदिर के लिए भूमिपूजन होने वाला था।

यह इतिहास की करवट का समय है। 5 अगस्त का दिन भारत के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखा गया है। आज हिन्दुस्तान के करोड़ों लोगों की वर्षों की तपस्या सफल हो गयी है। तकरीबन 500 साल, 76 युद्धों, लाखों लोगों के बलिदान और लगभग 25 पीढ़ियों की प्रतीक्षा 5 अगस्त को फलीभूत हो गयी है।

भगवान राम का यह मंदिर सिर्फ मंदिर नहीं है बल्कि रामकथा का एक नया अध्याय है। यह मंदिर नये भारत का उद्घोष है जो पूरे विश्व में भारत की शक्ति और भक्ति की पताका लहराने वाला है।

भगवान राम का यह मंदिर न केवल संपूर्ण भारत बल्कि एशिया के सभी देशों के करोड़ों लोगों की अनवरत तपस्या का परिचायक है।मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम की महिमा किसी धर्म से जुड़ी हुई नहीं है बल्कि वह हर जन गण के मन में बसते हैं। उनके जन्मस्थान पर बनने वाले इस मंदिर के भूमि-पूजन से भारत भूमि एक बार फिर से धन्य हो गयी है।

Facebook Comments