अखंड भारत के महान शिल्पी थे सरदार वल्लभभाई पटेल: अरुण श्रीवास्तव

गोरखपुर:  भारत के लौह पुरुष एवं अखंड भारत के शिल्पी सरदार वल्लभभाई पटेल की 146  वे जयंती पर गोलघर काली मंदिर के पास पटेल चौक पर उनकी मूर्ति पर माल्यार्पण करके श्रद्धा सुमन अर्पित किया गया। इस अवसर पर पीस पार्टी के प्रदेश महासचिव एवं अंतर्राष्ट्रीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय महासचिव अरुण कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि सरदार वल्लभभाई पटेल अखंड भारत के महान शिल्पी थे। वह किसी भी कार्य को पूरी तन्मयता से करने में माहिर थे और अपनी बात के पक्के थे इसी कारण उन्हें भारत के लौह पुरुष के रूप में जाना जाता है।

उन्होंने कहा कि विरोधी के हृदय को जीतना पटेल जी को बखूबी आता था।स्वतंत्रता मिलने के बाद 565 रियासतों को भारत संघ में एक साथ विलीनीकरण कर अखंड भारत का निर्माण करने में उन्होंने अनूठा उदाहरण दुनिया में प्रस्तुत किया है। उन्होंने महात्मा गांधी के सत्य अहिंसा पर आधारित जिस सत्याग्रह का मार्ग प्रशस्त किया उसको व्यवहार में लाने और उसके आधार पर देश की जनता को एकत्र करने का श्रेय अगर किसी को जाता है तो वह सरदार वल्लभभाई पटेल थे। वह  सरदार वल्लभभाई पटेल ही थे जिन्होंने 30 जनवरी 1948 को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या के बाद पंडित नेहरू के विरोध करने के बावजूद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबंध लगा दिया था जो पंडित जवाहरलाल नेहरू के छमाशीलता के कारण बाद में हटाया हटाया जा सका। अगर आज पटेल जी जीवित होते तो पूरे देश में जिस तरह से आरएसएस  समाज को तोड़ने का कार्य कर रही है लौह पुरुष जैसा व्यक्ति आर एस एस की चूलें हिला कर रख देते।
वह सरदार वल्लभभाई पटेल ही थे जिन्होंने उस समय संसद में कश्मीर में धारा 370 लागू करने का कार्य किया था और सर्वसंमति से संसद में उसे पास कराया था जब पंडित जवाहरलाल नेहरू देश से बाहर थे , शायद अगर पंडित जवाहरलाल नेहरु उस अवसर पर पर संसद में उपस्थित होते तो कश्मीर में धारा 370 लागू नहीं हो पाई होती। इसका कारण था कि वह कश्मीर संबंधी मामलों को श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पटेल जी के जिम्मे में छोड़ दिए थे। वह सरदार वल्लभभाई पटेल ही थे जिन्होंने राष्ट्रीय स्वाधीनता आंदोलन में बारडोली आंदोलन के नेतृत्व में विशेष भूमिका निभाई थी। वर्ष 1928 में गुजरात में बारडोली सत्याग्रह इसलिए किया गया था कि प्रांतीय सरकार ने किसानों के लगान में 30% की वृद्धि कर दी थी। सरदार पटेल ने इस लगान वृद्धि का खुलकर विरोध किया था। खेड़ा सत्याग्रह के दौरान पटेल महात्मा गांधी जी के निकट आए और उसी समय से उन्होंने कोट, पैंट और हैट छोड़कर धोती कुर्ता पहनना प्रारंभ कर दिया था।
पटेल ने किसानों का साथ देते हुए उनके लिए अंग्रेजो के खिलाफ लड़ाई लड़ी। सक्रिय राजनीति में खेडा़ सत्याग्रह से उनकी शुरुआत हुई। पटेल जी के इस सत्याग्रह के जरिए ही राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन में किसानों की शक्ति का उदय हुआ और पटेल के नेतृत्व में हुए सत्याग्रह के सामने आखिरकार अंग्रेजी सरकार को झुकना पड़ा। आज जिस तरह से किसानों के आंदोलन को दबाया जा रहा है अगर आज की तरह से  उस वक्त की सरकार रही होती तो शायद पटेल जैसे व्यक्ति को किसान आंदोलन के तरह से तमाम परेशानियों का सामना करना पड़ता ।
वर्तमान भारत सरकार को पटेल जी के द्वारा किए गए आंदोलनों और उनकी सफलता तथा अंग्रेज सरकार द्वारा उनकी बातों को मान लेना ऐसी बातों पर ध्यान देना चाहिए। अगर आज की सरकार के समय पटेल जी होते तो शायद पूरी ताकत से भारतीय जनता पार्टी की सरकार उनके द्वारा किए गए आंदोलनों को कुचलने का प्रयास करती। सरकार को ऐसे लौह पुरुष से शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए मगर 15 दिसंबर 1948 को देश का यह महान सिल्पी दुनिया को छोड़ गया उनको शत-शत नमन है। इस अवसर पर पीस पार्टी, अंतर्राष्ट्रीय किसान यूनियन एवं गोरखपुर कायस्थ सेना के तमाम लोगों के साथ ही सुनील श्रीवास्तव,संतोष कुमार श्रीवास्तव,अताउल्लाह शाही, संजय कुमार श्रीवास्तव,हाजी मकबूल अहमद,नगीनालाल प्रजापति आदि विशिष्ट गणमान्य लोग उपस्थित थे।

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