शिक्षा मानव के लिए क्यों जरूरी है

*जहां भी जली शिक्षा की चिंगारी।  ज्ञान का भंडार वहां सबपे भारी।।*

शिक्षा स्त्रीलिंग शब्द है। शिक्षा का पर्यायवाची विद्या, ज्ञान, नसीहत,सिख आदि है। शिक्षा किसी समाज में सदैव चलने वाली सोद्देशय सामाजिक प्रक्रिया है, जिसके द्वारा मनुष्य की जन्मजात शक्तियों का विकास, उसके ज्ञान व कौशल में वृद्धि एवं व्यवहार में परिवर्तन किया जाता है। मनुष्य को सभ्य, सुसंस्कृत एवं योग्य नागरिक बनाया जाता है। शिक्षा शब्द संस्कृत भाषा के “शिक्ष” धातु से बना है, जिसका अर्थ है ज्ञान उपार्जन या सीखना। शिक्षा विकास का मूल साधन है।

गुणों को निखारने और व्यवहार को परिमार्जित करने में शिक्षा का महत्व है।शिक्षा हमारे उज्जवल भविष्य के लिए बहुत ही आवश्यक साधन है। शिक्षा का उच्च स्तर लोगों की सामाजिक और पारिवारिक सम्मान तथा पहचान बनाने में मदद करता है। शिक्षा का उद्देश्य बच्चों के भीतर विचार और कर्म की स्वतंत्रता विकसित करना, दूसरों के कल्याण और उनकी भावनाओं के प्रति संवेदनशीलता पैदा करना, साथ-साथ बच्चों को नई परिस्थितियों के प्रति लचीले और मौलिक ढंग से पेश आने में मदद करना है। शिक्षा व्यक्ति के विकास के साथ-साथ राष्ट्रीय विकास में भी योगदान देता है। एकता, अखंडता,विश्वबंधुत्व, भाईचारा ,सदाचार,शिष्टाचार, अनुशासन ,सत्य का पालन की भावना का विकास केवल शिक्षा से ही संभव है। शिक्षा लोगों के दिमाग को खोलती है। ज्ञान के भंडार तक ले जाती है। स्वामी विवेकानंद ने कहा था- “मनुष्य का मस्तिष्क अक्षोर पुस्तकालय है ,जिसमें अनंत ज्ञान का भंडार है” ,सिर्फ उसे खोलने की आवश्यकता है। शिक्षा के बगैर मानव बिना पंख के पक्षी के समान है। जैसे बिना पंख के पक्षी गगन की अनंत उचाई में उड़ान नहीं भर सकता, उसी तरह शिक्षा के अभाव में मानव विज्ञान की गहराई को नहीं माप सकता है।

मां-पिता, दादा-दादी, नाना-नानी ,घर से लेकर ,विश्वविद्यालय तक, रोजमर्रा की दिनचर्या में, अपने आसपास घटित घटनाओं को देखकर, सुनकर, बहुत कुछ सीखते हैं। पिछले वर्ष से अब तक कोरोना ने हमारी ही नहीं पूरे विश्व की शिक्षा व्यवस्था को रोक के रख दिया है। प्राइमरीशिक्षा से लेकर विश्वविद्यालय तक बंद पड़ें हैं। बच्चे नियमित स्कूल नहीं जा पाने के कारण व्यावहारिक ज्ञान से वंचित हैं। रेगुलर जांच परीक्षा ना होने से उन्होंने अब तक क्या सिखा, कितनी शिक्षा ग्रहण की, क्या त्रुटियां है, क्या कमियां रह गई है, वह वास्तविकता बच्चों को, विद्यार्थियों को बिना जांच के पता नहीं चल पा रहा है ,पर हमें सबसे पहली जीवन बचाना जरूरी है। स्वस्थ और सुरक्षित रहेंगे तभी तो पढ़ाई करेंगे। बच्चे अपने-अपने घरों पर स्वयं से, अभिभावक से, ऑनलाइन, मोबाइल से, इंटरनेट से, शिक्षकों से मोबाइल पर बात करके, ज्ञान की बातें सीख रहे हैं। हमारे बच्चे घरों पर स्वाध्याय नियमित करते रहे हैं।जल्द सामान्य स्थिति होने वाली है। सभी शिक्षण संस्थान भी खुलेंगे। नियमित पढ़ाई भी होगी। हम दोगुने नहीं,चौगुने उत्साह से अपने छूटे हुए पाठ्यक्रम की तैयारी कर, उत्तम शिक्षा हासिल करेंगे। क्योंकि” महान वही है जिन्हें ज्ञान है”।

जान है, जहान हैं, तो विज्ञान है। हमारे विद्यार्थी हतोत्साहित ना हो,” शिक्षा घर से शुरू होती है और जीवन भर जारी रहती है”। शिक्षा का मतलब सिर्फ नौकरी प्राप्त करना नहीं है। नौकरी तो जीविका का जरिया मात्र है। शिक्षित होंगे तो हम स्वयं रोजगार सृजित करेंगे और दूसरों को भी काम देंगे। कलम के सिपाही जीवन में कभी हारते नहीं ।राजा अपने देश में ही पूजे जाते हैं।” विद्वान सर्वत्र पूजे जाते हैं”। शिक्षा के निम्न उद्देश्य है- मानव आत्मा का पोषण, जीवन के मूल्यों की प्राप्ति,आत्म सुरक्षा की तैयारी, मानसिक तथा आध्यात्मिक विकास, वैज्ञानिक विकास, आचरण और नैतिक चरित्र का विकास, संतुलित व्यक्तित्व का विकास ,स्व व सामाजिक मूल्यांकन की प्राप्ति, सामाजिक संगठन का निर्माण, सामूहिक भावना की वृद्धि, आदर्शवादी, जनतांत्रिक समाज की स्थापना, दया, क्षमा ,संतोष,सहानुभूति, आत्मसंयम,परोपकार,स्वदेश भक्ति, एवं पूर्णता की प्राप्ति। विद्यार्थी ही समाज या राष्ट्र की रीढ़ की हड्डी होती है। विद्यार्थी ही समाज और राष्ट्र की तरक्की के वाहक होते हैं। शिक्षा के कई प्रकार हैं- औपचारिकशिक्षा, निरोपचारिकशिक्षा, अनौपचारिक शिक्षा, स्मृति स्तर,बोध स्तर पर, चिंतन स्तर पर ,शिक्षा प्राप्त की जाती है। अतः आइए पुनः पौराणिक गौरवशाली बिहार के शैक्षणिक कालखंड के लक्ष्य की प्राप्ति हेतु, सबमें शिक्षा का अलख जगाए, ज्ञान का दीप चलाएं,कोरोना भगाएं,जल्द ही शिक्षण संस्थान जाएं।

*जिस समाज में हो शिक्षित सभी नर-नारी। सफलता-समृद्धि खुद बने उनके पुजारी ।।*

डॉ प्रेम कुमार

 

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