वाह रे मंहगाई…..लोग हुए बेबस और सरकार हुई नतमस्तक

कुछ वक्त पहले देश में जब प्याज के दाम तेजी से आसमान छू रहे थे तब देश की मौजूदा वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने संसद भवन में बढ़ती महंगाई पर जवाब देते हुए कहा था कि “मैं प्याज़ नहीं खाती ना ही मेरे घर में प्याज का इस्तेमाल होता है इसलिए मुझे प्याज के बढ़ते दामों के बारे में कुछ खास पता नहीं है।”

ऐसे में आज जब देश में पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस के साथ-साथ सरसों तेल के दामों में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है तो सवाल उठना लाज़मी है कि क्या वित्तमंत्री के घर में सरसो तेल या रसोई गैस का भी इस्तेमाल नही होता है ? सिर्फ इतना ही नहीं पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस के दामों में तो सबसे ज्यादा वृद्धि हुई है जिसका सीधा-सीधा असर गरीब और मध्यम वर्गीय परिवारों पर पड़ता है।
बीते 7 वर्षों में अगर हम आंकड़ों पर नजर डाले तो हम पाएंगे कि मौजूदा सरकार में महंगाई दर तेजी से बढ़ी है। अब चाहे वह पेट्रोल, डीजल के दामों में हुई वृद्धि की बात हो या हाल ही में सरसो तेल के दामों में वृद्धि की बात क्यों न हो। हालांकि केंद्र सरकार की तरफ से हमेशा महंगाई का ठीकरा अंतर्राष्ट्रीय बाजारों पर फोड़ दिया जाता है। जबकि मंहगाई बढ़ोतरी के मामले में सच्चाई तो कुछ और ही है जो किसी से छुपी नहीं है। 2014 से 2021 तक के आंकड़ों पर नजर डाले तो आप पाएंगे कि गत वर्षों में अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में कच्चे तेल के दामों में लगातार उतार-चढ़ाव होता रहा है कई बार तो कच्चे तेलों के दाम निचले स्तर पर भी पहुंचा है। बावजूद इसके देश में पेट्रोल और डीजल के दामों में बेतहाशा वृद्धि हुई है।
यही नहीं बात जब महंगाई की हो रही है तो खाद्य पदार्थों के बढ़े दामों को हम पीछे कैसे छोड़ सकते हैं। लिहाज़ा एक रिपोर्ट के मुताबिक अप्रैल में रिटेल महंगाई जहां 4.23% पर थी वहीं मई में वह बढ़कर 6.30 फ़ीसदी हो गई। वहीं थोक महंगाई दर की अगर हम बात करें तो मई में यह बढ़कर रिकॉर्ड 12.94 फीसदी पर पहुंच गई। जबकि मई में ही खाद्य महंगाई 1.96 % से उछाल मारकर 5.01% के स्तरों पर पहुंच गई।
आज स्थिति ऐसी हो गई है कि मई 2020 में 90 से 100 रुपये प्रति लीटर बिकने वाला सरसो तेल एक साल के भीतर 150-180 यहां तक कि कई जगहों पर 200 रुपए ली० तक बिक रहा है। वहीं पिछले एक महीने के भीतर सरकार ने एलपीजी सिलेंडरो के दामों में रिकॉर्ड 75 रुपए तक की बढ़ोतरी की है अर्थात देखा जाए तो सिर्फ 2021 में ही घरेलू गैस के दामों में 190 रुपए तक की बढ़ोतरी हुई है। जिसका सीधा असर मध्यम वर्गीय परिवार झेल रहा है। पेट्रोल और डीजल तो पहले से ही आम लोगों के जेब ढीले करने में जुटे हुए हैं।
बात जब महंगाई की हो रही है तो ऐसे में अंतराष्ट्रीय बाजारों के कुछ आंकड़े पेश करना भी आवश्यक हो जाता है। वर्ष 2014 मई में अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में कच्चे तेलों की कीमत प्रति बैरल 106.85 डालर थी जो अब 2021 में घट कर प्रति बैरल 71 डालर हो गई है फिर भी पेट्रोल और डीजल के दामों में कोई कमी नहीं है। कारण है केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा लगाया जाने वाला टैक्स। विपक्षी पार्टियां और कुछ रिपोर्ट्स तो यहां तक दावा कर रहीं हैं कि बीते 7 वर्षों के कार्यकाल में देश की मोदी सरकार ने पेट्रोल , डीजल और गैस से 23 लाख करोड़ की कमाई की है।
बहरहाल पेट्रोल, डीजल के अलावा आम जनमानस के लिए सबसे बड़ी आवश्यक वस्तु होती है एल.पी.जी सिलेंडर लिहाज़ा बात करें एल.पी.जी सिलेंडरो की तो 2014 में गैर सब्सिडी वाला गैस सिलेंडर जहां 410 रुपए था वहीं 2021 आते आते 885 रूपए पहुंच गया हालांकि इसमें सब्सिडी के नाम पर अब कुछ नहीं मिलता। वहीं 2014 में पेट्रोल की कीमत जहां 71.5 रुपए हुआ करती थी आज 2021 में वह बढ़ कर 100 का आंकड़ा भी पार कर चुकी हैं। कुछ राज्यों में तो इसकी कीमत 107 रुपए प्रति लीटर भी पहुंच गई है। ठीक इसी प्रकार 2014 में 57 रुपए प्रति लीटर बिकने वाला डीजल अब 88 से 90 रुपए प्रति लीटर हो चुका है। ऐसे में यह कहना बिल्कुल भी गलत नहीं होगा कि महंगाई कम करने का वायदा कर सत्ता में आई मौजूदा सरकार ने महंगाई कम करने के बजाय महंगाई को सातवें आसमान पर पहुंचाने का काम किया है जिसका सीधा असर आम जनमानस पर पड़ रहा है। सरकार को चाहिए कि वो महंगाई दर को कम करने के लिए कोई बेहतरीन नीति अपनाएं जिससे कि देश के लोगों का जीना आसान हो।
उज्ज्वल मिश्रा (अर्नव)

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