दुनिया के एक तिहाई स्कूली बच्चों के लिए रिमोट लर्निंग की सुविधाएं सुलभ नहीं

नई दिल्ली: युनिसेफ द्वारा जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में कम से कम एक तिहाई बच्चे- यानि 463 मिलियन बच्चे कोविड-19 के चलते स्कूल होने के बाद रिमोट लर्निंग में सक्षम नहीं थे, जिसके चलते दुनिया भर के देश ‘बैक-टू-स्कूल’योजनाओं के लिए जूझ रहे हैं।

युनिसेफ की एक्ज़क्टिव डायरेक्टर हेनरीटा फोर ने कहा कि कोविड-19 के चलते स्कूल बंद होने के कारण कम से कम 463 मिलियन बच्चों के लिए रिमोट लर्निंग की सुविधा उपलब्ध नहीं थी। इतनी बड़ी संख्या में बच्चों की शिक्षा कई महीनों के लिए बाधित हुई, ऐसे में इसे विश्वस्तरीय शैक्षिक आपदा कहा जा सकता है। इसके नतीजे आने वाले दशकों में अर्थव्यवस्थाओं और समुदायों में महसूस किए जाएंगे।

राष्ट्रव्यापी एवं स्थानीय लॉकडाउन के चलते, स्कूल बंद होने के कारण तकरीबन 1.5 बिलियन स्कूली बच्चों पर असर हुआ। द रिमोट लर्निंग रीचेबिलिटी रिपोर्ट रिमोट लर्निंग की सीमाओं तथा इसकी सुलभता में मौजूद असमानताओं पर रोशनी डालती है।

रिपोर्ट में प्री-प्राइमरी, प्राइमरी, लोअर सैकण्डरी एवं अपर सैकण्डरी स्कूली बच्चों के लिए रिमोट लर्निंग हेतु उपलब्ध घरेलू तकनीकों एवं उपकरणों की उपलब्धता का विश्लेषण किया गया है, जिसमें दुनिया भर के 100 देशों के आंकड़े शामिल हें। आंकड़ों में टीवी, रेडियो और इंटरनेट की उपलब्धता तथा स्कूल बंद होने के दौरान इन मंचों पर पाठ्यक्रम की उपलब्धता के आंकड़े शामिल हैं।

हालांकि रिपोर्ट में दिए गए आंकड़े स्कूल बंद होने के दौरान रिमोट लर्निंग की कमी की वास्तविक तस्वीर पेश करते हैं। युनिसेफ ने चेतावनी दी है कि इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं। यहां तक कि जब बच्चों के पास घर पर तकनीक एवं उपकरण उपलब्ध हैं, उसके बावजूद भी वे कई कारणों के चलते इन मंचों  के ज़रिए पढ़ने में सक्षम नहीं हैं, क्योंकि उन पर घरेलू काम, अन्य काम का दबाव रहता है, उनके घर में लर्निंग के लिए उचित वातावरण नहीं होता, उन्हें ऑनलाइन पढ़ाई के लिए सहयोग नहीं मिलता।

रिपोर्ट विभिन्न क्षेत्रों में मौजूद असमानता पर रोशनी डालती है। उप-सहारा अफ्रीका के बच्चों पर इसका सबसे ज़्यादा असर हुआ है, जहां तकरीबन आधे बच्चे रिमोट लर्निंग में सक्षम नहीं हैं।

क्षेत्र स्कूली बच्चों का न्यूनतम अनुपात जिनके पास रिमोट लर्निंग सुलभ नहीं है (%) स्कूली बच्चों की न्यूनतम संख्या जिनके पास रिमोट लर्निंग सुलभ नहीं है
पूर्वी और दक्षिणी अफ्रीका 49% 67 मिलियन
पश्चिमी और मध्य अफ्रीका 48% 54 मिलियन
पूर्वी एशिया और पेसिफिक 20% 80 मिलियन
मध्यपूर्व और उत्तरी अफ्रीका 40% 37 मिलियन
दक्षिणी एशिया 38% 147 मिलियन
पूर्वी यूरोप और मध्य एशिया 34% 25 मिलियन
लेटिन अमेरिका ओर कैरिबियन 9% 13 मिलियन
ग्लोबल 31%  463 मिलियन 

रिपोर्ट के अनुसार सबसे गरीब वर्ग एवं दूर-दराज के ग्रामीण इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए स्कूल बंद होने के कारण रिमोट लर्निंग न कर पाने की संभावना सबसे अधिक होती है। दुनिया भर में 72 फीसदी स्कूली बच्चों के लिए रिमोट लर्निंग सुलभ नहीं है, जो सबसे गरीब परिवारों से ताल्लुक रखते हैं। उच्च-मध्यम-आय वर्ग वाले देशों में सबसे गरीब वर्ग के 86 फीसदी स्कूली बच्चों के लिए रिमोट लर्निंग सुलभ नहीं है। दुनिया भर में ऐसे तीन चैथाई बच्चे ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं, जिनके पास ये सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं।

रिपोर्ट में विभिन्न आयु वर्गों के लिए सुलभता की दरों पर भी रोशनी डाली गई है, जिसके अनुसार सबसे कम उम्रके बच्चों के लिए रिमोट लर्निंग सुलभ न होने की संभावना सबसे अधिक होती है, जबकि जीवन के इन शुरूआती वर्षों में लर्निंग और विकास सबसे अधिक महत्वपूर्ण होता है।

  • प्री-प्राइमरी उम्र के तकरीबन 70 फीसदी बच्चे-120 मिलियन बच्चों- तक रिमोर्ट लर्निंग सुलभ न होने के कई कारण हैं जैसे छोटे बच्चों के लिए ऑनलाइन लर्निंग की चुनौतियां और सीमाएं, इस शिक्षा श्रेणी के लिए रिमोट लर्निंग प्रोग्राम की कमी तथा रिमोट लर्निंग के लिए घर में सुविधाओं की कमी।
  • कम से कम 29 फीसदी प्राइमरी स्कूल के बच्चे- 217 मिलियन बच्चों के लिए रिमोट लर्निंग सुलभ नहीं है। इसी तरह 24 फीसदी लोवर सैकण्डरी बच्चों- यानि 78 मिलियन बच्चों के लिए ये सुविधाएं सुलभ नहीं हैं।
  • अपर-सैकण्डरी स्कूली बच्चों की बात करें तो 18 फीसदी यानि 48 मिलियन स्कूली बच्चों के लिए रिमोट लर्निंग सुलभ नहीं हैं, रिमोट लर्निंग के लिए तकनीक की उपलब्धता न होना इसका मुख्य कारण है।

युनिसेफ ने सरकारों से अनुरोध किया है कि लॉकडाउन के प्रतिबंध हटाए जाने के बाद स्कूलों को दोबारा सुरक्षित रूप से खोलने को प्राथमिकता दी जाए। अगर स्कूल खोलना संभव नहीं है तो इन बच्चों के लिए लर्निंग को सुनिश्चित किया जाए, ताकि उनकी स्कूली शिक्षा जारी रखी जा सके और साथ ही स्कूल दोबारा खोलने की योजनाओं को ध्यान में रखा जाए। स्कूल खोलने की नीतियों में विशेष रूप से सीमांत समुहों के लिए शिक्षा की सुलभता और रिमोट लर्निंग शामिल हैं। हमें मौजूदा और भावी संकट को ध्यान में रखते हुए शिक्षा प्रणाली को अनुकूल बनाना होगा।

युनिसेफ द्वारा युनेस्को, यूएनएचसीआर, डब्ल्यूएफपी और विश्व बैंक के सहयोग से जारी स्कूलों को फिर से खोलने के लिए रूपरेखा से राष्ट्रीय एवं स्थानीय अधिकारियों को व्यवहारिक परामर्श देता है। इसके दिशानिर्देश नीतिगत सुधार; आर्थिक आवश्यकताओं; सुरक्षित संचालन; क्षतिपूर्ति अध्ययन; वैलनेस एवं सुरक्षा तथा सीमांत बच्चों तक पहुंच आदि सभी पहलुओं पर ध्यान केन्द्रित करते हैं।

खसतौर पर सबसे गरीब एवं संवेदनशील वर्ग के लिए कोविड-19 महामारी की रोकथाम हेतू अपने अभियान रीइमेजिन के तहत युनिसेफ, रिमोट लर्निंग के लिए डिजिटल खामियों को दूर करने हेतु तुरंत निवेश का आह्वान करता है, ताकि हर बच्चे तक रिमोट लर्निंग की सुविधा पहुंचे और स्कूलों को फिर से सुरक्षित रूप से खोलने को प्राथमिकता दी जाए।

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इंडिया पैरा :

भारत में महामारी के कारण 1.5 मिलियन (15 लाख) से अधिक स्कूल बंद हुए, जिसका असर प्राइमरी एवं सैकण्डरी कक्षाओं के 286 मिलियन (28.6 करोड़)स्कूली बच्चों पर पड़ा, इनमें से 49 फीसदी लड़कियां हैं। इसके अलावा 6 मिलियन (60 लाख) लड़के और लड़कियां कोविड-19 के पहले से स्कूल नहीं जा रहे थे।

भारत सरकार और राज्य सरकार ने घर में ही बच्चों की पढ़ाई को जारी रखने के लिए डिजिटल एवं गैर-डिजिटल माध्यमों से कई पहलें की हैं जैसे दीक्षा पोर्टल (ऑनलाइन), दूरदर्शन एवं स्वयं प्रभा (टीवी चैनल) और नेशनल रिपोज़िटरी आॅफ ओपन एजुकेशन रिसोर्सेज़; आॅल्टरनेट एकेडमिक कैलेंडर तथा अन्य राज्य प्लेटफाॅम्र्स/पहलें।

हालंाकि बच्चों/ छात्रों के द्वारा लर्निंग सामग्री की सुलभता और उपयोगिता के लिए कई आउटरीच रणनीतियों की आवश्यकता है, डिजिटल खामियों के मद्देनज़र खासतौर पर दूर-दराज के इलाकों के लिए यह बेहद महत्वपूर्ण है।

उपलब्ध आंकड़ों से साफ है कि भारत में तकरीबन एक चैथाई (24 फीसदी) परिवारों के पास इंटरनेट सुविधा उपलब्ध है, यहां ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों के बीच बड़ा अंतर है, साथ ही लिंग विभेद भी बड़े पैमाने पर व्याप्त है। मध्यम एवं निम्न आय वर्ग के परिवारों के लिए यह अंतर और भी अधिक बढ़ सकता है क्योंकि आर्थिक दृष्टि से वंचित परिवारों के लिए रिमोट लर्निंग की सुविधा सुलभ नहीं है।

सीमांत समुदायों के छात्रों और लड़कियों के पास स्मार्टफोन उपलब्ध नहीं है, और अगर हैं भी तो इंटरनेट कनेक्टिविटी अच्छी नहीं है। अक्सर उनकी अपनी भाषा में गुणवत्तापूर्ण शैक्षणिक सामग्री उपलब्ध नहीं हो पाती। इन सब कारकों के चलते रिमोट लर्निंग में असमानता का स्तर और अधिक बढ़ जाता है।

युनिसेफ इण्डिया की प्रतिनिधि डॉ यास्मीन अली हक ने कहा, ‘‘हम जानते हैं कि किसी भी संकट का असर सबसे ज़्यादा संवेदनशील वर्गों एवं बच्चों पर पड़ता है। स्कूल बंद हैं, अभिभावकों के पास काम नहीं हैं और परिवारों पर तनाव बढ़ता जा रहा है। इस पीढ़ी के बच्चों की शिक्षा पूरी तरह से बाधित हो रही है। डिजिटल शिक्षा की सुलभता सीमित है और इस कमी को दूर करने के लिए कई चुनौतियां हैं। ऐसे में इन समस्याओं के समाधान के लिए समुदायों, अभिभावकों और स्वयंसेवकों के सहयोग से संयुक्त दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है।’’

सम्पादक के लिए नोटः

ये परिणाम कोविड-19 के चलते स्कूल बंद होने के कारण राष्ट्रीय शिक्षा प्रतिक्रिया पर युनेस्को- युनिसेफ- विश्व बैंक द्वारा किए गए सर्वेक्षण पर आधारित हें। ब्राॅडकास्ट मीडिया एवं इंटरनेट समाधानों के द्वारा संपर्क किए गए बच्चों की संख्या उनके घर पर टीवी, रेडियो और इंटरनेट की सुलभता पर आधारित है। ऐसे में ‘संभावी’बच्चों की संख्या ‘वास्तविक’संख्या का उपरी अनुमान है। विश्वसनीय आंकड़ों की कमी के चलते कागज-आधारित कवरेज को शामिल नहीं किया गया है।

इस विश्लेषण में उन बच्चों पर ध्यान नहीं दिया गया है, जो स्कूल नहीं जाते हैं। स्कूल नहीं जाने वाले बच्चों के बारे में नए आंकड़ों के लिए विज़िट करें: https://www.unicef.org/sites/default/files/2019-12/SOWC-019.pdf 

युनिसेफ के बारे में

युनिसेफ दुनिया के सबसे मुश्किल स्थानों में काम करते हुए दुनिया के सबसे वंचित बच्चों तक पहुंचने के लिए कार्यरत है। 190 देशों और क्षेत्रों में हम हर स्थान पर, हर बच्चे के लिए काम करते हैं और हर किसी के लिए इस दुनिया को बेहतर बनाने के लिए प्रयासरत हैं। यूनिसेफ़ एवं इसके कार्यों के बारे में अधिक जानकारी के लिए विज़िट करें www.unicef.org.

रीइमेजिन अभियान के बारे में

कोविड-19 महामारी के मदृदेनज़र युनिसेफ ने अपने अभियान रीइमेजिन का लाॅन्च किया- जिसके तहत सरकारों, सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र के दानदाताओं से युनिसेफ के प्रयासों में सहयोग प्रदान करने की अपील की गई है, ताकि दुनिया को कोविड-19 के मौजूदा संकट से बाहर निकालने में योगदान दिया जा सके। हम सब मिलकर कुछ ऐसा कर सकते हैं कि इस महामारी का असर बच्चों- खासतौर पर संवेदनशील वर्ग केे बच्चों पर कम से कम हो- और रीइमेजिन के ज़रिए इस दुनिया को हर बच्चे के लिए निष्पक्ष बनाया जा सके। रीइमेजिन अभियान के बारे में अधिक जानकारी के लिए www.unicef.org/reimagine

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